सबसे छोटे दिन के मामले में पृथ्वी ने फिर से अपना रिकॉर्ड तोड़ा है। 29 जुलाई को धरती ने अपना पूरा चक्कर 1.59 मिलीसेकेंड्स कम समय में लगा लिया। 24 घंटे में पृथ्वी को एक चक्कर पूरा करने के लिए जितना समय चाहिए ये उससे कम है। इससे पहले 2020 में धरती पर सबसे छोटा महीना देखा गया था। उस साल 19 जुलाई को धऱती ने 1.47 मिलीसेकेंड पहले ही 24 घंटे का चक्र पूरा कर लिया। 1960 के बाद ऐसा पहली बार देखा गया।
इंडिपेंडेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक हाल के दिनों में पृथ्वी की स्पीड में पहले से इजाफा हुआ है। हालांकि इसका कोई पुख्ता कारण अभी तक सामने नहीं आया है लेकिन शोध कर रहे वैज्ञानिकों का मानना है कि इसकी कई वजहें हो सकती हैं। इनमें धऱती की भीतरी और बाहरी सतह पर होने वाली गतिविधियों के साथ समुद्र, लहरों और जलवायु परिवर्तन भी जिम्मेदार हो सकते हैं। वैसे अभी तक इस मामले में अध्ययन किया ही जा रहा है कि धरती में आ रहे परिवर्तन के लिए कौन की चीज जिम्मेदार है।
रिपोर्ट कहती है कि अगर धऱती तेजी से घूमती रही तो लीप सेकेंड पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। इससे स्मार्ट फोन, कंप्यूटर्स और कम्यूनिकेशन सिस्टम को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है। मेटा ब्लॉग का जिक्र कर रिपोर्ट में कहा गया है कि लीप सेकेंड वैज्ञानिकों के लिए तो फायदे का सौदा है लेकिन ये एक रिस्की प्रैक्टिस है। इसके फायदे से ज्यादा नुकसान हो सकते हैं।
ऐसा इस वजह से है कि घड़ी आगे बढ़ती है तो 11 बजकर 59 मिनट और 59 सेकेंड से आगे बढ़कर 60 सेकेंड पर आती है। उसके बाद ही 12 बजते हैं। अगर धऱती ऐसे ही जल्दी से चक्कर पूरा करती रही तो प्रोग्राम क्रैश होने के साथ डाटा भी करप्ट हो सकता है।
जो सॉफ्टवेयर समय पर केंद्रित होते हैं उनके लिए भारी मुसीबत पैदा हो सकती है। इस दिक्कत को दूर करने के लिए जरूरी है कि इंटरनेशनल टाईम कीपर्स को नेगेटिव लीप सेकेंड जोड़ना पड़ सकता है। हालांकि तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी है कि लीप सेकेंड पहले ही 27 बार अपडेट किया जा चुका है।