कुकी और मैतेई समुदाय के बीच मणिपुर में शुरू हुए जातीय हिंसा को दो महीने से ज्यादा वक्त बीत चुके हैं, फिर भी भड़की इस हिंसा की आग थमने का नाम नहीं ले रही है। इस हिंसा के कारण मणिपुर के ज्यादातर हिस्सों में दहशत का माहौल है। वहीं हजारों लोग बेघर हो गए हैं, जो विस्थापित होकर राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं। इस बीच खबर आ रही है कि मणिपुर के पश्चिमी कांगपोकपी इलाके में फिर हुई हिंसक झड़प में इलाके में तैनात एक पुलिसकर्मी की जान चली गयी और करीब 10 लोग घायल हो गए हैं। उसके बाद आज फेयेंग और सिंगदा गांवों से गोली चलने की आवाज सुनी गईं।
घायलों का आकड़ा ज्यादा भी हो सकता है
रविवार रात से ही कई इलाकों से लगातार गोली चलने की आवाज आ रही है। इस कारण यहां के आम लोगों में डर का माहौल है। बता दें कि असम राइफल्स दोनों गांवों के बीच एक बफर जोन का प्रबंधन करती है। संबंधित अधिकारियों ने दोनों पक्षों की ओर से और अधिक लोगों के हताहत होने की संभावना से इनकार नहीं किया और कहा कि गोलीबारी जब पूरी तरह ख़त्म होगी उसके बाद ही सही आकड़ों का पता लग पाएगा।
भारतीय सेना ने की थी AFSPA की मांग
मणिपुर में जारी जातीय हिंसा के बीच सेना ने लगभग एक सप्ताह पहले AFSPA (आर्म्ड फोर्स स्पेशल प्रोटेक्शन एक्ट) की मांग की थी। मणिपुर में भारतीय सेना और असम राइफ़ल की टुकड़ियां मौजूद हैं। लेकिन AFSPA ना होने की वजह से सेना मणिपुर में लॉ एंड ऑर्डर सम्भाल तो रही हैं लेकिन कोई एक्शन नहीं ले पा रही है। इसलिए इसकी मांग की जा रही है।
मणिपुर में जारी जातीय हिंसा में 140 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है और लगभग 3000 लोग घायल हैं।यह आकड़ा इससे ज्यादा भी हो सकता है। हालात पर काबू पाने के लिए मणिपुर में इस समय मुख्यमंत्री के कहने के बाद 3 मई से लेकर अभी तक भारतीय सेना और असम राइफ़ल की कुल मिलाकर 123 टुकड़ियां तैनात की गई हैं। लेकिन आर्म्ड फोर्स स्पेशल पॉवर एक्ट (AFSPA) ना होने की वजह से पूरी ताकत के साथ सेना मणिपुर में लॉ एंड ऑर्डर सम्भाल तो रही हैं लेकिन कोई कड़ा एक्शन नहीं ले पा रही।
पूरा मामला जानिए
बता दें कि, अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में आदिवासी एकजुटता मार्च के आयोजन के बाद पहली बार 3 मई को झड़पें हुई थीं। मेइती समुदाय मणिपुर की आबादी का लगभग 53 प्रतिशत हैं और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं। जनजातीय नागा और कुकी जनसंख्या का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और पहाड़ी जिलों में निवास करते हैं। राज्य में शांति बहाल करने के लिए करीब 10,000 सेना और असम राइफल्स के जवानों को तैनात किया गया है।
लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद भी कोई सुधार देखने को नहीं मिल रहा है, जिस कारण आम लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अब तक इस हिंसा में 140 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है और 3000 से अधिक लोग घायल हो गए हैं। केंद्र की मोदी और राज्य की बिरेन सरकार अब तक इस मसले पर पूरी तरह विफल दिखी है।