माहवारी के दिनों में स्कूल और वर्किंग प्लेस से छुट्टी के संबंध में दायर अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया है। जनहित याचिका में 1961 मातृत्व लाभ अधिनियम का जिक्र कर छात्राओं और कामकाजी महिलाओं को उनके मासिक धर्म के दौरान उनके संबंधित कार्यस्थलों पर अवकाश देने के लिए अर्जी लगाई गई थी। पीआईएल में सुप्रीम कोर्ट से अपील की गई थी कि वो सभी राज्य सरकारों को इस संबंध में निर्देश जारी करे।इस मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह सरकारी नीति से संबंधित मामला है, इस तरह के मामले में कोई निर्देश देने का मतलब होगा कि महिलाओं की भर्ती में दिक्कत आएगी।अदालत ने कहा कि बेहतर यह होगा कि याचिकाकर्ता इस संबंध महिला बाल कल्याणा विकास मंत्रालय का दरवाजा खटखटाए। लिहाजा यह याचिका खारिज की जाती है।
क्या है मामला
माहवारी के दिनों में छुट्टी के लिए याचिका
सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई थी अर्जी
तीन जजों की बेंच ने की सुनवाई
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, पीएस नरसिंहा, जे बी परदीवाला शामिल
अदालत ने सरकारी नीति बताया
याचिकाकर्ता को महिला बाल विकास मंत्रालय जाने की सलाह
अदालत ने याची से क्या कहा
तीन जजों की बेंच ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि वो उनके विचार और तर्क से सहमत हैं। सवाल यह है कि अगर आप नियोक्ता पर छुट्टी के लिए दबाव बनाएंगे तो महिलाओं को नौकरी देने से नियोक्ता बचेंगे। इसके अलावा यह पॉलिसी से जुड़ा मामला है, लिहाजा अदालत दखल नहीं देगी।बता दें कि इस संबंध में शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने याचिका दायर की थी। उनका कहना है कि एक्ट में इस बात का प्रावधान है कि प्रेग्नेंसी, मिसकैरेज, नसबंदी और इससे जुड़े केस में नियोक्ता पेड लीव दे सकता है। लेकिन यह देखा गया है कि राज्य सरकारें उन प्रावधानों का पालन करने में नाकाम रही हैं।